Wednesday 6 November 2013

एक माँ ...(लघु कथा)








सुषमा सुबह से कुछ खोई खोई थी खुश भी थी कुछ उदास भी...प्यारे बेटे राजू के स्कूल एडमिशन का दिन जो  था ..पिछली रात कितनी देर राजू के पापा को मनाती रही ..हम भी संग जाएगें राजू के स्कूल...अरी तुम क्या करोगी ..अंग्रेजी स्कूल है तुम्हारे लिए काला अक्षर भैंस बराबर ..अपना चूल्हा चौका करो घर संभालो ..रात भर कान में ये शब्द तीर की तरह 
प्रहार करते रहे...कभी इस करवट तो कभी उस करवट ..कितनी मन्नतों के बाद नसीब से राजू की किलकारियां घर में गूंजी थी...सुषमा ने एक एक क्षण राजू को जैसे गले से लगा कर रखा था ...दिन भर उसका ख्याल..उसके खेलने से लेकर उसके सोने तक ..रात को अपनी नींदें खराब कर उसको सुलाती ..लोरी सुनाती...
आज सब अलग सा था...राजू को नहलाते हुए मन पानी में जैसे डूब रहा हो...सब कुछ तो किया...घर बार पति राजू...राजू को जन्म दिया पाला, बड़ा किया नाना दादा बुआ कहना सब सिखाया ..ये गलत है..ये सही..सब कुछ तो ..फिर क्यों आज मैं पराई सी लग रही हूँ..आज मुझे अपने बेटे के साथ.. जो इतनी ख़ुशी का दिन है जिसको मैं महसूस करना चाहती हूँ...नन्हें राजू की उस ख़ुशी को अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ ..क्यों मुझसे उस हक़ को छीना जा रहा है...तभी आवाज कानों में पड़ते ही सुषमा सकपका गयी..राजू की माँ ..जल्दी राजू को तैयार करो ...टाइम पर पहुँच जाऊँगा तो सार काम ठीक ठाक से हो जाएगा ...जी अभी करती हूँ..बस राजू तैयार है...सुषमा राजू को कपडे पहना बाल सवारने लगी..राजू बाहर जाने के लिए बहुत खुश था...तभी अपनी मासूम आँखों को उठा कर बोला...मम्मी तुम चलोगी ...पापा कह रहे थे आज मैं स्कूल जाऊँगा...वहां और भी बच्चे होते हैं...सुषमा से जवाब दिए बना ..आंसू पोंछती रसोई में चली गयी..दोनों का टिफिन बनाने लगी...इतनी भी अनपढ़ नहीं हूँ मैं...बारवीं पास हूँ..आगे नहीं पढ़ पाई...घर के हालातों की वजह से...
टिफिन लेकर बाहर आई तो मन धक से रह गया. .. दोनों दरवाजे पर खड़े थे ...अरे जल्दी लाओ..तुम जाने कौन सी दुनिया में रहती हो...चलो हम चलते हैं...राजू मुड़ मुड़ कर अपनी माँ  को देखता रहा ...पर सुषमा की इतनी हिम्मत थी कि ..वो उस दहलीज को लांघ अपने बच्चे की उगली थाम उसके साथ चल सके .....इतनी नम हो गयी आँखें कि...सब धुंधला सा दिख रहा था ....वो अपने आप को भी कहीं नहीं देख पा रही थी...राजू बाहर की दुनिया में कदम रखने जा रहा था ...रोती बिलखती सिरहाने में मुहं छुपा कर कहने लगी...कौन..हूँ..मैं..एक माँ एक पत्नी या..... एक औरत... 

Tuesday 15 October 2013

ये अंधविश्वास कब तक






हमारा देश ऋषि मुनियों की पावन स्थली रहा है पुरातन काल से लेकर लोगों की प्रगाढ़ आस्था देवी देवताओं से लेकर ऋषि मुनियों संत महात्माओं तक रही है परन्तु आज की परिस्थिति  
चिंताजनक है | आज के युग में जन मानस के अन्दर श्रद्धा के नाम पर एक भयंकर अंधविश्वास का माहौल बनता जा रहा है ,हर शहर गली मोहल्ले में आज किसी न किसी बाबा का साधू का बर्चस्व कायम है | ये अवश्य या संभव है कि लोग अपनी आस्था को किसी के प्रति अवश्य प्रकट करें चाहे वो ईश्वर हो या कोई महात्मा हो या फिर कोई साधू संत ,ये सही है कि सत्संग और प्रवचन से हमें मानसिक शांति मिलती है और अध्यात्मिक शांति मिलती है परन्तु आज के युग में ये सब एक पाखंड धोखा और भक्ति के नाम पर चलने वाला कारोबार बनकर रह गया है ,धर्म के नाम पर अपना हित साधने वाले ऐसे साधू बाबाओं की कोई कमी नहीं है जो समाज की कमजोर नब्ज औरतों और बच्चों को विश्वास में लेकर अपने कृत्यों को अंजाम देते हैं | ये किसी एक बाबा के विषय में नहीं है बल्कि ऐसे हजारों उदाहरण हमारे सामने मौजूद है जहाँ कोई न कोई साधू या संत कुकर्म या लोगों को छलता हुआ पकड़ा जाता है | ये बेहद गंभीर विषय है और एक दुखद पहलु है कि जो संत महात्मा अपनी वाणी के ओज से हमारे हृदय को निर्मल कर सकते हैं लोगों की अगाध ज्ञान पिपासा को शांत कर सकते हैं वही बाबा साधू संत पर किसी दुष्कर्म का संगीन आरोप हो | आस्था और अंधविश्वास के माहौल से ऊपर उठ कर लोगों को ये जानना चाहिए और जानने का पूरा हक़ भी है कि आज के बाबा या संत है क्या ,इन साधू संतो की परिभाषा क्या है इनके जीवन यापन करने का क्या ढंग है ये अपने जीवन में सही में संत है या नहीं | जब भी कोई एक इंसान किसी दुसरे इंसान से ऐसी धार्मिक आस्था लगा बैठता है तो दूसरा इंसान एक भगवान की तरह हो जाता है ऐसे में  उसकी जिम्मेवारी कई गुना बढ़ जाती है यहाँ साधू संतों को सही अर्थ में परिभाषित करना बेहद जरूरी है साधू कौन है बाबा क्या है  | 
जब भी कोई इंसान साधू या संत बनता है तो उसका संसार से अपने घर परिवार से  मोह माया से एक नाता टूट जाता है ,वो सारे ऐशोआराम का परित्याग कर एक दुर्लभ जीवन जीने की और मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो जाता है,उसका एक ही लक्ष्य रह जाता है की वो अपना पूरा जीवन सादगी से ईश्वर में लीन होकर बिताये और जनता को ज्ञान, प्रवचन दे और लोगों की अध्यात्मिक ज्ञान पिपासा को शांत करे  | 
सतयुग, त्रेता जैसे युगों में अगर भूले से भी कभी किसी महात्मा साधू के दर्शन हो जाते थे तो लोग धन्य हो उठते थे,इतना तेज उनके चेहरे पर समाहित रहता था | प्राचीन काल में ऋषि मुनियों का वर्चस्व रहा ये ऋषि वो ज्ञानी पंडित थे जिन्होंने संसार का मोह माया का त्याग दिया और ईश्वर की खोज में एक परम सत्य की  खोज में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया,  हिमालय की कंदराओं में बैठ हजारों साल तपस्या की जिनका इस भौतिक संसार से कोई वास्ता नहीं था | हमारे वेद पुराण प्राचीन ग्रन्थ इन्ही ऋषि मुनियों  की देन है आज भी हम उन ग्रंथों को इश्वर का सन्देश मान पूजते हैं हमारे वेदों में इतना दुर्लभ ज्ञान है की विज्ञान भी उसके सामने कुछ नहीं है इन ऋषियों ने अपने तपों से ऐसी अपार शक्तियों को हासिल किया था कि ये अदृश्य हो जाते थे और किसी अन्य जगह दृश्यमान होते थे, पल भर में अन्तर्धान हो जाना कुछ ही क्षणों में ब्रहमांड की दूरी तय करना इतियादी, ये तपस्या कोई साधारण तपस्या नहीं होती थी बल्कि एक ऐसी कठोर तपस्या जो बिना अन्न जल को ग्रहण किये हजारों सालों तक चलती थी तब जाकर ऐसे ज्ञान की या दिव्य शक्ति की प्राप्ति संभव थी  | उस समय के ऋषियों ने कभी भी अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि अपने अन्दर छुपे ज्ञान को सदगति देते थे ,यहाँ तक की राजा भी राज्य पर आयी भारी विपदा के समय राज्य सम्बन्धी सलाह लेने के लिए किसी न किसी ऋषि महात्मा का आश्रय लेते थे | 
   वेदों में लिखे साधू संतों के लिए वैधानिक नियमों के अंतर्गत मोह माया से परे जीवन जीना पड़ता है जबकि आज ऐसा नहीं है साधू महात्माओं आज का ये रूप बहुत कुछ सोचने को विवश करता है ,न ही आज का संत एक कठोर जीवन जीने को दृढ हैं बल्कि भक्ति के नाम पर खुद को भगवान बनाने की कोशिश की जाती है , लोगों की श्रद्धा और आस्था को विलासिता के पावं तले कुचला जा रहा है | आज का साधू या बाबा लोगों के बीच राजा की तरह रहता है ,हजारों सेवादार नौकर आगे पीछे घूमते हैं अंगरक्षकों की फ़ौज खड़ी रहती है ,आज के बाबा कितनी जमीनों पर कब्ज़ा जमा करोड़ों की संपत्ति के मालिक बने बैठे हैं ,दर्शनों के लिए लोगों की इतनी भीड़ तो शायद किसी मंदिर में भी देखने को नहीं मिलती है | भक्ति के नाम पर कुकृत्यों और दुष्कर्मों का एक अजीब  मिश्रण पिछले कुछ सालों में देखने को मिला है , कृष्ण प्र्बचन या गीताज्ञान के मध्य न जाने किस अबोध या मासूम पर वो शैतान नजर पर जाये कि अपनी हवस और कामना की आग को बुझाने हेतु एकांत वास का बहाना बना ऐसे घनघोर गंदे कृत्यों पाप दुष्कर्मों को अंजाम दिया जाता है | भक्ति के नाम पर छलावा करने वाली बाबाओं की बेहद डरावनी तसवीर उभर कर आ रही है ,जो स्वयं को ईश्वर बता कर जाने कितने लोगों की श्रद्धा का अपमान कर रहें हैं एक अंधविश्वास का वातावरण तैयार कर रहे हैं |
लोगों में इस प्रकार के अंधविश्वास और आस्था को लेकर जागरूकता बेहद जरूरी है कि वो ये समझे कोई मनुष्य ईश्वर का वो दर्ज प्राप्त नहीं कर सकता जो स्वयं ईश्वर का है  क्यों कि मनुष्य के अन्दर अच्छाई के साथ साथ कितनी बुराइयां और कमजोरियां हैं ,वो भी अन्य जीवों की तरह एक प्राणी है जो जन्म लेता है और समय के काल चक्र से ग्रसित हो मृत्यु को प्राप्त होता है | ईश्वर एक ही है जिसने इस ब्रहमांड का निर्माण किया इस सृष्टि की रचना की प्रकृति जीव जंतुओं और मनुष्य को बनाया , ईश्वर सभी के दिलों में वास करता है उसे अपने अन्दर ढूंढें अपने अच्छे कर्मों में खोजे फिर कहीं अन्यत्र जाने कि आवश्यकता नहीं होगी |  


Saturday 20 July 2013

बच्चे हमारी धरोहर



आज समाज की दुर्दशा को देख बहुत अफ़सोस होता है अपराध इस कदर तेजी से फैल रहा है, कि ऐसा कोई भी दिन नहीं होता हैं कि जब अखबार में इस तरह कि कोई खबर न छपी हो, चाहे वो बलात्कार हो लूटपाट हो या हत्या कि खबर हो | ये बेहद दर्दनाक पहलु है कि हमारे देश के ज्यादातर नौजवान युवावर्ग इस अपराधिक प्रवृति का शिकार हो रहा है चाहे फिर वो निम्न वर्ग हो माध्यम वर्ग हो या ऐशोआराम कि जिंदगी जीने वाला बड़े लोगो का वर्ग हो, अपराध ने हर जगह अपने पैर पसार रखे है | अखबारों और न्यूज चैनल्स के माध्यम से हम रोज ही ऐसी घटनाओं से रूबरू होते हैं ,खूब हंगामा होता है, मोमबतियां जला कर लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं फिर कुछ दिन गुजरने के बाद सब शांत हो जाता है | उस अपराधी को सजा मिले या न मिले पर एक बात यहाँ गौर करने वाली ये है जो भी घटनाएँ प्रकाश में आती हैं या लाई जाती हैं उनसे अपराधियों के हौसले और बुलंद होते हैं फिर कहीं और जगह किसी और घटना को अंजाम दिया जाता है | जाहिर है कि कानून प्रक्रिया का सुस्त होना, गुनाहगार को सजा न मिल पाना या जमानत पर उसका छूट जाना कितने ही कारण हो सकते हैं इस तरह से बढ़ते अपराध के | ये बात यहाँ समझने वाली है कि जो व्यक्ति अपने जिंदगी में पहली बार अपराध करता है वो हम में से ही है वो इस समाज से ही आता है ,परन्तु मानसिक तौर पर वो इस कदर बीमार होता है कि अपराध करने में उसे किसी भी तरह का या कोई भी संकोच नहीं होता है | आखिर हमारी नयी पीढ़ी या युबा वर्ग किस तरफ जा रहा है | जिस जहरीले पेड़ को आप नष्ट करना चाहते हो अगर आप उसकी सिर्फ शाखाएं काटते रहोगे तो कोई लाभ नहीं होगा क्योकि शाखाएं तो फिर से उग आती हैं | उसी तरह से सिर्फ दो चार अपराधियों को सजा देने से समाज में बेख़ौफ़ बढ़ते अपराध को कम नहीं किया जा सकता है जब तक के हम जड़ में पहुँच कर उस अपराध के पेड़ को जड़ समेत उखाड़ नहीं फेंकते |यह सोचना बेहद जरूरी है कि पन्द्रह साल के उपर के बच्चों में ये अपराधिक भावना क्यों जनम लेने लगती है और वो क्यों अपराध के इस दलदल कि और क्यों खिचे चले जाते हैं |अगर हम कोशिश करें तो हम इस युवा वर्ग को अपराध कि तरफ बढ़ने से रोक सकते हैं,ये हमारी धरोहर हैं | ये जिम्मेदारी हर माँ बाप की है की अपने बच्चों को सही शिक्षा दे सही वातावरण और स्वस्थ माहौल में बच्चों की परवरिश करें
           
आइये जानते हैं कुछ ऐसी बातों को जो हम अपने बच्चों को सिखा सकते हैं और उनका भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं :-


 1. बच्चों में धार्मिक भावना का विकास करें:

जब बच्चा स्कूल जाने लगे तो ये समझ जाना चाहिए की उसे अच्छे और बुरे का ज्ञान हो रहा है ,उसे बताएं ईश्वर क्या है, कौन है ,कभी कभार मंदिर ले जाएँ हमारे समाज के अंदर बहुत से लोग ये मानते हैं की छोटे बच्चों को पूजा पाठ क्या सिखाना,उनके  हंसने खेलने की उमर है इत्यादि कितनी तरह की बातें होती हैं परन्तु हर माता पिता को ये जानना आवश्यक है की कच्ची उमर में ही संस्कारों के बीज बोये जा सकते हैं | अगर आपका बच्चा पूजा पाठ करता है तो उसमे ईश्वर के प्रति एक भाव उत्पन्न होता है ,की इस संसार को चलाने वाला ईश्वर है अगर वो कोई भी गलत काम करेगा तो ईश्वर सजा देगा |
२. बच्चों को वेद मंत्रो की शिक्षा दें:

अक्सर इस दौड़ती भागती दुनियां में हम अपने पौराणिक वेद पुरानो और ग्रंथों से दूर हो चुके हैं न ही हम आगे की आने वाली पीढ़ियों को इसकी शिक्षा दे पा रहे हैं , हमारे वेदों में जो मंत्र हैं उनमे गूढ़ रहस्य छिपे होने के साथ साथ चमत्कारिक शक्तियां भी मौजूद है  वेदों में बहुत सुंदर बातें लिखी गयी हैं हम उन्हें अपने बच्चों को बताएं | वैदिक मन्त्रों को भी हम अपने बच्चों को सिखा सकते हैं |
३. बच्चों को नैतिकता का पाठ पढाएं:

नैतिक शिक्षा, सैधान्तिक मुल्य और आदर्श जीवन के कुछ जरुरी अंग हैं
क्या सही है क्या गलत ये बच्चों को जरूर बताएं बड़ों का आदर करें ,छोटों से स्नेह करें गुरु के प्रति विनम्र बने ,घर पर कोई अतिथि आए तो शांत भाव से रहें उनसे आदरपूर्वक बात करें |
४. सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाएँ :

सत्य से बड़ी ताकत नहीं है ,बच्चों को सिखाएं सदा सत्य बोलें और सत्य का साथ दें | हमारे साथ इस दुनियां में मौजूद हर जीव को दया की दृष्टि से देखें
अहिंसा के मार्ग पर चलने को कहें, आस पास रह रहे जानवरों पक्षियों को तंग न करें उन्हें ये सिखाएं |
५. ईमानदारी का
 गुण बताएं:
जिस तरह कुम्हार चिकनी मिटटी को अपने अनुरूप आकार देकर एक घड़ा तैयार करता है ठीक वैसे ही बच्चे होते हैं बेहद कोमल मासूम, अच्छी आदतों का बीज कच्ची उमर में ही बोया जा सकता है  उन्हें कुछ अच्छी बातें सिखाएं
जैसे इमानदारी, आज भ्रष्टाचार की दुनियां में ये एक बहुत अजीब चीज लगती है ईमानदारी अपने आप में एक गुण हैं, इसके गुणों को बच्चों के सामने उजागर करें |
६. बच्चों को को कला के क्षेत्र की तरफ अग्रसर करें :

माँ बाप बच्चे के बारे में सब कुछ जानते हैं पढाई के आलावा ये जानने की कोशिश करें की बच्चे को क्या अच्छा लगता है | उससे ये बात पूछें अगर बच्चे का मन संगीत पेटिंग या डांस में हैं तो उसे रोकें नहीं बल्कि उसके सहायक बने, कला संगीत एक ऐसी चीज है जो बच्चों को बुराई से दूर ले जाती है |
७. खेल कूद की तरफ उनके कदम बढ़ाएं :

 खाली समय में या छुट्टियों में बच्चों को किसी भी खेल को दिनचर्या में शामिल करने को कहें हाकी फूटबाल इतियादी कुछ भी | इससे बच्चों को खाली समय नहीं मिलेगा और खेल बच्चों में अनुसाशनभी लाता है | इससे मन और शरीर दोनों तंदरुस्त रहेगे |
८. अपने बच्चों को टी. वी  इन्टरनेट से दूर रखें :

अक्सर आजकल बच्चे बाहर खेलने के बजाये घर में ही टी.वी या इन्टरनेट पर खुश रहते हैं | आज कल टी.वी बच्चों के देखने के लिए नहीं रह गया है और इन्टरनेट पर तो अश्लील सामग्री व्यंजनों की तरह परोसी जा रही है ,बच्चों को इससे दूर रखें | बच्चों को होमवर्क के बाद थोड़ी देर बाहर मैदान में खेलने भेजें |
   

 

Monday 3 June 2013

ना करें मांस + आहार =मांसाहार


मनुष्य को  इस धरती पर सबसे उत्कृष्ट और सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया है या यूँ कहें इश्वेर ने हमें अपना स्वरूप  प्रदान किया है, सभी जानवरों और पशु पक्षियों से ज्यादा गुणवान बनाया है वाबजूद इसके की हममें अच्छे और  बुरे को समझने की शक्ति है, हम पाप वृति में उतने ही ज्यादा लिप्त नजर आतें हैं  |
 इसमें  एक पाप है किसी जीव को मार कर अपनी जीभ की लालसा को तृप्त कर अपना पेट भरना यानि मांसाहार करना | "जीव हत्या पाप है" ये शब्द अब सिर्फ किताबों में ही पढने को मिलते हैं आज आधी से ज्यादा दुनिया  खाने में मांस का प्रयोग करती है  मांसाहार हमेशा  दुनिया  के लिए बहस का मुद्दा रहा है में  यहाँ पर इसलिए नहीं लिख रहे की इस पर कोई बहस छेड़ी जाए बस कोशिश यही है इस मांसाहार शब्द का मतलव साफ़ कर सकूं|  हमारे हिन्दू धर्म  में दो तरह का आहार माना गया है सात्विक और तामसिक आहार सात्विक आहार में सत्व गुण होते है जिसमें  शाक माने साग्सब्जी, फूल, फल, कंदमूल, हमारी बनस्पतियां शामिल हैं ये देवताओं, योगी, ऋषियों  का आहार है, जबकि तामसिक आहार में तमो गुण पाए जाते हैं इसमें  मांस ,मछली, रक्त मदिरापान इत्यादि शामिल हैं ये राक्षसों, चांडालों और धूर्त  व्यक्तियों  का आहार माना गया है इसी लिए कहा गया है जैसा आहार, वैसा मन और जैसा मन वैसी प्रवृति |
मांसाहारी के शब्द मात्र के उच्चारण से स्पष्ट होता है मांस का आहार करने वाले ,ये  आज की बात नहीं है मांस खाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है आदिम युग की सभ्यता में भी ये माना जाता है की इंसान ने सबसे पहले जानवरों का शिकार कर  मांस का भक्षण करना शुरू किया इस संदर्भ में हम यहाँ एक बात कहना चाहेगें तब मनुष्य पूर्ण विकसित नहीं था उसमे अच्छे बुरे की समझ नहीं थी दूसरे उस वक्त शिकार करने के अलावा जीवित रहने के लिए अन्य कोई विकल्प भी मौजूद  नहीं था, उस वक्त उसने जो सही समझा वो किया पर आज स्थिति वो नहीं है इश्वेर ने प्रकृति के साथ मिल कर आहार स्वरुप हमें ढेरों विकल्प प्रदान किये हैं आज इंसानी सभ्यता अपनी चरम सीमा पर है ,इंसान का सभ्य होना इस बात की पहचान है की इंसान गलत सही का निर्णय अपनी सोच को आगे रखते हुए कर सकता है अगर नहीं तो इस बात को समझिये समय के बदलाव के साथ वो ही  बदलता गया बल्कि और सभ्य हो गया, यही बदलाव जानवरों जैसे शेर भालू चीते में भी देखने को मिल सकता था शेर आज भी वही है जो हजारों साल पहले था |
लोग इस बात पर भी बहस करते है कि हमारे वेदों में मांस खाने को वर्जित नहीं माना गया है  लोग ऐतरेय उपनिषद और मनुस्मृति कि बात करते हैं पहले के यज्ञो मे पशुओं कि बलि दी जाती थी जिसे मंत्रो द्वारा शुद्ध किया जाता था उस मांस को ब्राह्मण ग्रहण करते थे पर बाद में ब्राह्मणों ने खुद को सही और उच्च कोटि का दिखने के लिए मांस का त्याग किया |
ये बातें मूल रूप से मनुस्मृति या किसी उपनिषद कि नहीं हैं बल्कि इसमें स्वार्थ वश कुछ ऐसी बातें मध्यकाल के दौरान जोड़ी गयी जो गलत हैं | वेद हमारे हिन्दू धर्म का आधार हैं और कोई भी धर्म चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम इसाई हो या जैन धर्म किसी भी धर्म में ये नहीं लिखा गया है या कहा गया है कि आप किसी भी निरीह जीव प्राणी का वध कर के उसे अपना आहार बनाओ |
क्षत्रियों में ये एक महज धारणा है  माना जाता है कि अगर राजा शिकार ना करे या उनके वशज जो अपने आपको राजपूत कहते हैं मांस ना खाएं तबतक वीरता का परिचय नहीं मिलता और ये भी कहा जाता है कि मांस में ज्यादा ताकत होती है,  इसे खाने वाला ज्यादा शक्तिशाली होता है  अगर ऐसा है तो ये बताएं कि शेर ज्यादा ताकतवर है या हाथी |इस मामले में तो शेर को ही ज्यादा ताकतवर होना चाहिए जब कि ऐसा नहीं है और हाथी का आहार केवल फल और घास है | यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि हमें शेर से डर लगता है इस लिए नहीं कि वो ज्यादा ताकतवर  है बल्कि इसलिए कि उसकी प्रवृति खूंखार है ,भयभीत करने वाली है, हिंसक है  यहीं  से मांस को अपना आहार बनाने का सही अर्थ निकलता है हम जैसा आहार ग्रहण करेगे हमारा मन हमारी प्रवृति को दर्शायेगा |
इस संसार कि रचना कितनी सुंदर कि गयी है हमारे साथ साथ हजारों जीवों पशुपक्षियों कि प्रजातियाँ इस धरती पर मौजूद हैं  हर एक  जीव एवं प्राणी को इश्वेर के  द्वारा रचा गया है इसलिए खासकर अपने लिए किसी जीव को कष्ट पहुचाना पाप है  |जान वही ले सकता है जो जीवन दे सकता है , अर्थात अगर आप किसी को बदले में जीवन दे सकते हो तभी आप को किसी कि जान लेने  का हक है वरना नहीं |
एक और बात कही जाती है कि अगर इसी तरह जानवर भेड़ बकरियां बढ़ते रहे तो धरती का संतुलन बिगड़ जाएगा संतुलन कायम रहे इसलिए मांस खाना निश्चित रूप से ठीक है
यहाँ पर भी में ये कहूगी अगर उपरवाले ने सृष्टि कि रचना कि है तो इसको चलाने का संतुलन कायम करने का विधान भी बनाया ही होगा जब भी संसार में तेजी से पशु पक्षी बढ़ते हैं तो अकाल मृत्यु होती है, जानवरों में बीमारियाँ फैल जाती है जो महामारी का रूप धारण करती हैं , संतुलन कायम करने के लिए तो बड़ा जानवर छोटे जानवर हो खता है  जिस तरह से मांसाहारी जानवरों में शरीर कि बनावट शाकाहारी जानवरों कि तुलना में अलग किसम कि होती है, अगर आप भी मांस खाते हैं तो आप कि बनावट भी वैसी ही होनी चाहिए शेर जैसे पंजे और नुकीले दांत होने चाहिए |
आप मांस खा सकते हैं बशर्ते उसे मार ना गया हो (जब उसे मार जाता है तो उस वक्त उसके चारों और जो भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है उससे उस जानवर के अंदर कुछ रासायनिक बदलाव होते है)  उसे वेदना तड़फ और दर्द ना हो और अगर आप किसी मरे हुए पशु का मांस खाना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि जब भी आत्मा शरीर छोडती है तो वो शरीर लाश माने मृत हो जाता है ,कुछ ही घंटों में वो सड़ने लगता है, उसमे कीटाणु पनपना शुरू हो जाते है असल में बात ये है कि जब भी कोई प्राणी चाहे मनुष्य हो या पशु का शव सड़ने लगता है तो वो तुच्छ योनियो का जैसे कीड़े मकोड़े चील कौओं का आहार बन जाता है | क्या अब  भी आप मांस खाएगे दोनों ही सूरतों में चाहे मार कर या मरा हुआ ना ही जीव को खाना चाहिए ना ही वो खाने योग्य है
हम अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में यही देखते  हैं ,जब कभी एक छोटा बच्चा पहली बार बकरी को देख कर आपसे सवाल करता है तो उसे उतर  में आप यही कहेगे  कि बकरी दूध देती है इसका दूध उपयोगी होता है ना कि ये कहेगे इसका मांस खाने के काम आता है अगर ये उस नन्हे बच्चे के लिए अच्छाई का सबक है तो आपको भी ये सबक लेना चाहिए कि "जीव हत्या पाप है ",
अब आप कहेगे हमने हत्या नहीं कि कसाई ने काटा है ये बात भी आप बखूबी जानते होगे अर्थशाश्त्र में एक नियम है, मांग और पूर्ति means  डिमांड एंड सप्लाई|